कार्यक्रमों की संरचना

इतिहास सकंलन योजना के अर्न्तगत चलने वाले कार्यक्रमों की सरंचना भारतीय सस्ंकृति के अनुसार की गयी। इतिहास के व अन्य कार्यक्रमों में शुभारम्भ के लिये फीता काटने की विदेशी पद्धति का इतिहास के कार्यक्रमां में प्रयोग करना बंद कर दिया गया। इतिहास के बडे़ सम्मेलनों, गोष्ठियों, परिसंवादों के सार्वजनिक उद्घाटनों और समापनों के लिये निम्नलिखित पद्धति तय की गई है :

परिसंवाद का सार्वजनिक उद्घाटन क्रमशः सर्वप्रथम दीप प्रज्ज्वलन, बाबा साहिब आपटे को माल्यार्पण, सरस्वती वंदना, संकल्प पाठ, मंच पर विराजमान महानुभावों का परिचय एवं सम्मान के बाद कार्यवाही आरंभ। समापन वन्दे मातरम् के संपूर्ण गीत के गायन के साथ। साधारण बैठकें, गोष्ठियां – छोटी बैठकों, चर्चाओ ंऔर गोष्ठियों के लिये सर्वप्रथम बाबा साहिब आपटे के चित्र को माल्यार्पण और बाद में इतिहास की सम्पूर्ण सकंल्पना के प्रतीकात्मक इतिहास पुरुष के वर्णन के संस्कृत श्लोक का सामूहिक उच्चारण के बाद कार्यक्रम का आरम्भ निश्चित है।

इतिहास पुरुष के श्लोक का सामूहिक उच्चारण अन्य बड़े कार्यक्रमां में भी हो सकता है। इतिहास के अनुसंधान और लेखन के लिये भारतीय कालक्रम और इतिहास सकंलन योजना के अंतर्गत चलने वाले कार्यक्रमां की सरंचना की भारतीय पद्धति से आरंभ और समापन की सारी व्यवस्थाओ ंका श्रेय श्री मोरोपंत पिंगले जी को ही जाता है।

श्री मोरोपंत पिंगले इतिहास के तत्त्व दर्शन के द्रष्टा थे और ठाकुर जगदेव चन्द स्मृति शोध सस्ंथान उन्हीं के चिंतन का स्मारक है। परिसंवाद के शोध पत्रों के वाचन और समारोप के अवसर पर कृति सत्रांरभ और समारोप निम्नलिखित रूप में होगा :

।। कृतिसत्रारंभः ।। उपाकर्म । देशकालौ सकींर्त्य ।।

अस्माकम् अध्याप्यानाम् अधीतानाम् अध्येष्यमाणानाम् ज्ञातानाम् ज्ञातव्यानाम् प्रयुक्तानाम् प्रयोक्तव्यानाम् च विषयाणाम् मध्ये………………………………… विषये चर्चापूर्वकम् यातयामतानिरासेन आप्यायनद्वारा अद्ययावत्त्वसपांदनार्थम् मिलितैः एभिः विद्वद्भिः सह उपकर्माख्यम् कर्म करिष्यामः।

भाव अर्थ- हमने जो पढ़ा, जो पढ़ेगे, जो पढ़ायेंगे, जो जाना और जानेगें जिनका प्रयोग किया और जिनका प्रयोग करेंगे ऐसे विषयों मे ंसे ………………………………. विषय की चर्चा करने के उपरान्त इस में कालवाह्य त्याज्य संदर्भों को दूर करके और आवश्यक नये सदंर्भ जोड़ कर विस्तार से परिपुष्ट स्थिति लाकर उसको अध्यावत् अवस्था दिलाने के लिये ‘उपाकर्म’ करेंगे।

समारोपः उत्सर्जनम् । उपाकर्मनिर्दिष्ट अस्माकम्…………………..विषये स्वीकृतसिद्धान्तरूमस्य प्रचारप्रसारोद्देशेन उत्सर्जनम् करिष्यामः। उपाकर्म में निर्दिष्ट……………… विषय मे ंसिद्धान्तस्वरूप जिसे स्वीकार किया, उसके प्रचार प्रसार के लिये हम उत्सर्जन करेंगे हैं।

यूरोप के इतिहासकारों और तत्कालीन भारत के विदेशी अंग्रेजी साम्राज्यवादी इतिहासकारों ने भारत के जिस करोडा़ें वर्षों के गौरवशाली इतिहास को नष्ट कर दिया था, उसका श्री मोरोपतं जी ने गहराई से अध्ययन किया था और उन्होनें कहा कि भारत के इस दीर्घ कालीन इतिहास के अनुसंधान और लेखन के लिये देश की चारों दिशाओं में कम से कम चार शोध केन्द्रों की स्थापना करना एक राष्ट्रीय आवश्यकता है। वर्तमान में ठाकुर जगदेव चन्द स्मृति शोध सस्ंथान की स्थापना उन्हीं के इतिहास चिंतन का स्मारक है।