अनुसंधान एवं लेखन

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के आजीवन प्रचारक, माननीय मोरोपन्त पिंगले अखिल भारतीय इतिहास संकलन योजना के जनक एवं मार्गदर्शक, इतिहास के द्रष्टा थे और उनके प्रेरणास्त्रोत थे, विद्वता की भारतीय परम्परा में ऋषि तुल्य श्री बाबा साहिब आपटे। वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रथम आजीवन प्रचारक थे।

गत 150-200 वर्षों में भारत की सरकारी शिक्षा सस्ंथाओं में जो इतिहास पढ़ाया जाता है और इस अवधि में इतिहास के जो अनुसंधान एवं लेखन के जो कार्य हुए हैं वे न तो भारतीय कालक्रम के अनुसार है और न ही भारतीय सस्ंकृति से युक्त। इस का कारण यह है कि मैकाले ने भारतीय शिक्षा की गुरुकुलों की शिक्षा पद्धति समाप्त कर यहां यूरोप की शिक्षा पद्धति आरंभ कर विदेशी ईसाई कालगणना भारत पर थोप दी। यह गणना तात्त्विक न होकर ईसा के जन्म के साथ सबिंंधत है और इसका वर्तमान अस्तित्व 2009 वर्ष का है। जिस गणना का अस्तित्व ही 2009 वर्ष का है वह भारत के 197 करोड़ वर्षों के इतिहास का लेखन नहीं कर सकती। अतः इस मापक से भारत के 197 करोड़ वर्ष के इतिहास के लेखन की कल्पना करना बुद्धि के पीछे डण्डा लेकर भागने की बात है। यूरोप के इतिहासकारों ने भागना बंद नहीं किया और अपनी समस्त शक्तियां लगाकर इस मापक से 50 वर्षों तक भारत के इतिहास को लिखने के लिये एडी़ से चोटी तक पसीना बहाया परंतु अंततः वह अपने लेखन के इस अभियान में पूर्णतः असफल रहे।

श्री मोरोपंत पिंगले ने विदेशियों द्वारा लिखे भारत के इतिहास को और उससे उत्पन्न हुई समस्यों और भ्रान्तियों का गहराई से अध्ययन किया और यह सुनिश्चित किया कि इतिहास लेखन के लिए कालक्रम तय करना आवश्यक है क्योंक लेखन बिना कालक्रम के होना असंभव है। उपरोक्त विदेशी और 2009 वर्षों के अस्तित्व वाली कालगणना भारत के इतिहास का लेखन करने में पूर्णतः असफल सिद्ध हुई है। ऐसी स्थिति में फिर कौन से कालक्रम को लिखने के लिये तय किया जाये यह प्रश्न उत्पन्न हुआ और कालक्रम की खोज प्रारम्भ हुई। विश्व में वर्तमान में प्रायः 70 कालगणनायें प्रचलित हैं। उन सब में भारतीय कालगणना प्राचीनतम है। श्री मोरोपंत पिंगले ने इन सब गणनाओं का तुलनात्मक अध्ययन किया और इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि इन सब कालगणनाओं में सबसे प्राचीन भारतीय कालगणना है और यही गणना काल तत्व पर आधारित है। अन्य सभी गणनाएं घटना विशेष या पुरुष विशेष या सम्प्रदाय विशेष या देश विशेष से सम्बन्धित हैं, तात्विक नहीं हैं। भारतीय कालगणना अत्यंत प्राचीन है। हिरण्यगर्भ के विस्फोटित विश्व द्रव्य से सृष्टिचक्र प्रारंभ हुआ तो सर्वप्रथम कालपुरुष की स्थापना हुई। वहीं से भारतीय कालगणना का आरंभ होता है। अतः यह गणना ब्रह्माण्ड की रचना, विकास और लय का इतिहास, ग्रहों अर्थात् सर्यू की आयु और अन्य ग्रहों के आयु के अतिरिक्त पृथ्वी का जन्म, उसके विकास का संपूर्ण इतिहास और उसकी संपूर्ण आयु भी बताती है। अतः यह गणना भारत के 197 करोड़ वर्ष के इतिहास के लेखन में सक्षम है, इस निर्णय पर श्री मोरोपंत जी पहुंचे और इतिहास लेखन के लिए इसी भारतीय कालक्रम को स्वीकार कर लिया गया है।

देश में ईसाई कालगणना ही सर्व प्रभावी थी। अतः भारतीय कालगणना की पुनः स्थापना के लिये प्रचार प्रसार करना आवश्यक था। इसके लिये उन्होनें ‘‘भारतीय कालणना की रूपरेखा’’ नामक पुस्तक प्रकाशित की। हिन्दू समाज में आज भी धार्मिक अनुष्ठानों में – यथा भूमि पजून, शिलान्यास, यज्ञ, और इस प्रकार के अन्य कार्यक्रमों में इसी कालगणना के आधार पर संकल्प पाठ का ग्रहण होता है और प्राचीन काल से अब तक के भारत की धर्म पीठों यथा जालन्धर पीठ, हरिद्वार पीठ और गया पीठ आदि में पुराने संकल्प पाठ बिखरे पड़े हैं। उनको श्री मोरोपंत ने संकलित कर ‘‘संकल्प’’ नाम से पुस्तिका प्रकाशित करवाई और इतिहास के कार्यक्रमों में ‘संकल्प पाठ’ का ग्रहण आवश्यक कर दिया। अब प्रायः प्रारूप से सतत प्रयास से भारत के इतिहासकारों और प्रबुद्ध वर्ग में यह गणना दिनोंदन सर्वप्रिय हो रही है। भारतीय कालगणना के स्रोत संकल्प पाठ का प्रारूप यहां प्रस्तुत है

संकल्प पाठ विष्णुर्विष्णुर्विष्णुः। नमः परमात्मने श्रीपुराणपुरुषोत्तमस्य श्री विष्णोराज्ञया प्रवर्तमानस्याद्य श्रीब्रह्मणोऽह्नि द्वितीयपराद्धे श्रीश्वेतवाराहकल्पे वैवस्वतमन्वन्तरे अष्टाविंशतितमे कलियुगे प्रथमचरणे बौद्धावतारे भूर्लोके जम्बूद्वीपे भारतवर्षे भरतखण्डे आर्यावर्तान्तर्गतब्रह्मावर्तैकदेशे ………… प्रदेशे ………….जनपदान्तर्गते …..क्षेत्रे ………….. स्थाने/ग्रामे/नगरे ……वर्तमाने…….संवत्सरे…………..अयने महामंगलप्रदे मासानाम् उत्तमे …………मासे………….पक्षे…………..तिथौ……………वासरान्वितायाम् ………………नक्षत्रे………………गोत्रोत्पन्नः………….नामाऽहं………….प्रयोजनाय………………………………कर्मसम्पादनार्थं सकंल्पम् अहं करिष्ये