भारत के इतिहास की रूपरेखा

इस पृथ्वी पर भारत विश्व का प्राचीन देश है और इस कारण इसका इतिहास भी अत्ंयत प्राचीन है। यदि कोई पूछे कि कितना तो काल का जितना अस्तित्व है, भारत के इतिहास की सीमा भी वहीं तक है क्योंकि काल और इतिहास का अंग-अंगी भाव सम्बन्ध है

भारत प्राचीन काल में सारे विश्व का गुरु रहा है। उस समय इसकी सीमायें चार सागरों से आबद्ध थीं। पूर्व में प्रशान्त महासागर, पश्चिम में भूमध्य सागर, उत्तर में क्षीरसागर और दक्षिण में हिन्दूसागर। पुराणों के भूगोल के अनुसार हिमालय भारत के मध्य में है। यह अपना पर्वू का छोर िंसंगापुर में बनाता है और वहां से ऊपर की ओर कमान की तरह वहां के देशों को व्याप्त करता हुआ भारत के मध्य से जाता हुआ पश्चिम में अपना छोर इरान में बनाता है। इसकी शाखायें और प्रशाखायें उत्तरी सागर तक जाती हैं। इस प्रकार भारत के दो भाग हो जाते है – उत्तर और दक्षिण। प्राचीन काल में उत्तर के भाग का नाम उत्तर कुरु था और दक्षिण भाग का दक्षिण कुरु।

विश्व गुरु के नाते भारत का तत्कालीन इतिहास अत्यंत गौरवशाली था। समाज परम वैभव युक्त था। देश में दूध और घी की नदियां बहती थी। सोने चाँदी का धुंआ निकलता था। उस समय यह कहा जता था कि यदि इस ‘‘पृथ्वी पर कहीं स्वर्ग है तो यहीं है, यहीं है।’’

भारत का यह गौरवशाली इतिहास युगों की वैज्ञानिक भारतीय कालगणना के अनुसार चार युगो में विभक्त है :-

1. देवयुग – प्रथम मानवोत्पत्ति से 1,97,29,49,110 वर्ष पूर्व से लेकर 10, 000 वर्ष तक।
2. ब्रह्म युग – 1,97,29,39,110 वर्ष पूर्व से 12,05,33,110 वर्ष पूर्व तक।
3. क्षात्र युग – 12,05,33,110 वर्ष पूर्व से 5110 वर्ष पर्वू तक।
4. वर्तमान कलियुग – (वैवस्वत मन्वन्तर के 28 वें महायुग का कलियुग) 5110 वर्ष।