व्यक्ति विशेष

भारतीय मजदूर संघ व दत्तोपन्त ठेंगड़ी

चेतराम गर्ग

(वर्ष 13, अंक 1-2) चैत्र-आषाढ़ मास कलियुगाब्द 5122 अप्रैल-जुलाई 2020

23 जुलाई, 1955 तिलक जयन्ती के शुभ दिवस पर भोपाल में भारतीय मजदूर संघ की स्थापना हुई।1 इस अवसर पर ठेंगड़ी जी ने कहा – भारतीय मजदूर संघ सर्वकल्प राष्ट्र निर्माण का एक अंग है और राष्ट्रहित की चौखट के भीतर मजदूर हित की कल्पना साकार करना उसका उद्देश्य है। यह मजदूरों का, मजदूरों के द्वारा, मजदूरों के लिए चलने वाला संगठन है, जो सभी प्रकार के प्रभाव यथा- सरकार का प्रभाव, राजनीतिक दलों का प्रभाव, विदेशी विचारधारा का प्रभाव और व्यक्तित्व, नेतागिरी के प्रभाव से ऊपर उठकर कार्य करेगा।2 इसके मुख्यतः तीन सूत्र होंगे- राष्ट्रहित, उद्योग हित और मजदूरहित। प्रश्न उठता है कि मजदूर क्षेत्र में जो पूर्व में संगठन चल रहे थे उनकी कार्यप्रणाली कैसी थी? इस ओर ध्यान देने पर भारतीय मजदूर संघ की स्थापना से पूर्व चार मजदूर संगठन काम कर रहे थे उनमें AITUC, INTUC, HMS और UTUC नामक मजदूर संगठन थे। जिनकी स्थापना क्रमशः 31 अक्तूबर, 1920, ०३ मई, 1947, 24 दिसम्बर 1948 और अप्रैल 1949 में हुई थी।3 प्रथम विश्व युद्ध के बाद यू.एन.ओ. ने अन्तर्राष्ट्रीय श्रम संगठन की आवश्यकता महसूस की। जिस कारण 1919 में आई.एस.ओ. की स्थापना हुई और भारत में 1920 में एटक (ऑल इण्डिया ट्रेड युनियन कांग्रेस) की स्थापना हुई। ऑल इण्डिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस तात्कालिक जरूरत के हिसाब से जल्दबाजी में बनानी पड़ी थी। इससे पूर्व भारत में कोई मान्यता प्राप्त मजदूर संगठन नहीं था। यह सरकार से मान्यता प्राप्त संगठन बना। ट्रेड यूनियन का साम्यवादियों के प्रभाव में चले जाना भारतीय मजदूर संगठनों का भला न कर सका। इसके कर्त्ता-धर्त्ता भारत के बजाए रूस में थे इसलिए AITUC के अधिकतर श्रमिक नेता भारत के बजाए रूस में रहते थे।4 अतः एटक मजदूरों का भला करने के बजाए साम्यवादियों तथा आई.एल.ओ. का भला अधिक सोचते थे।

               कांग्रेस को अपना संगठन तैयार करना था। इसलिए 3 मई, 1947 को श्री गुलजारी लाल नन्दा की अध्यक्षता में श्री वल्लभ भाई पटेल के प्रयास से इंटक (इण्डियन नेशनल ट्रेड यूनियन कांग्रेस) की स्थापना की गई। हिन्द मजदूर पंचायत (एच.एम.पीठ) और हिन्दू समाज सभा (एच.एम.एस.) दोनों लगभग साथ-साथ बनी। उपरोक्त मजदूर संगठन पार्टी विचार व हित को ध्यान में रखकर बने थे। राष्ट्रहित और मजदूर हित इसमें कोसों दूर था। कम्युनिष्ट मजदूर एकता के नाम पर विश्वभर में अपनी शक्ति का प्रदर्शन कर रहे थे। भारत भी उससे अछूता नहीं था। दूसरी ओर भारत सरकार का झुकाव भी रूस के साम्यवाद की ओर ही था। ऐसे में एक ऐसे मजदूर संगठन की आवश्यकता महसूस की जा रही थी जो इस साम्यवादी आंधी को रोक सके। जिस बारे में पण्डित दीनदयाल उपाध्याय नागपुर में एक बैठक में इस संदर्भ में अपने विचार व्यक्त कर चुके थे। इस कार्य के लिए उस समय ठेंगड़ी जी का नाम सुझाया गया था। भारतीय मजदूर संघ किसी स्पर्धा के लिए नहीं बना था। इसके पीछे राष्ट्र पुनर्निर्माण और समरस समाज रचना का उदात्त व ऐतिहासिक कारण था।5

               गांधी हत्या का दोषी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को ठहराना कांग्रेस सरकार की एक सोची-समझी रणनीति व षड्यन्त्र पूर्ण पक्ष था। समाज संगठन की यह धारा अवरूद्ध हो जाए और सरकार के विरोध में बोलने वाली सबल जनशक्ति खड़ी न हो सके। परन्तु इस प्रतिबन्ध ने ही संघ के विविध आयामों को जन्म दिया। अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् 9 जुलाई, 1949 को विधिवत अस्तित्व आ में चुका था।6 श्री दत्तोपन्त ठेंगड़ी जी नागपुर और विदर्भ में विद्यार्थी परिषद् का कार्य करते हुए समाज जागरण का कार्य कर रहे थे। विद्यार्थी परिषद् की एक बैठक में निर्णय लिया गया कि मध्य भारत में मजदूर आन्दोलन का इतिहास लिखा जाए। इसकी जिम्मेदारी ठेंगड़ी जी को दी गई। निर्णय होने के बाद इंटक के प्रादेशिक अध्यक्ष श्री पी. वाय. पाण्डे से ठेंगड़ी जी ने सम्पर्क किया। ठेंगड़ी जी का इनसे पुराना सम्पर्क तथा पारिवारिक सम्बन्ध भी थे। जब ठेंगड़ी जी ने श्री पाण्डे से मध्यभारत में मजदूर आन्दोलन के विषय में इतिहास जानने और लिखने की बात की तो वे ठेंगड़ी जी से गुस्से में बोले – ‘‘यह फजूल की बातें रहने दो, तुम स्वयं इंटक में आ जाओ।’’ इस समय हम कम्युनिष्टों के साथ उलझे हुए हैं। वे मास्को के पिठ्ठू हैं। मजदूर क्षेत्र में उनके प्रभाव को रोकना होगा।7 साम्यवाद पर ठेंगड़ी जी का गहरा अध्ययन था। श्री पाण्डे जी से हुई सारी बात ठेंगड़ी जी ने श्री गुरुजी को बताई तथा पाण्डे की बातों को गुरुजी ने सही ठहराते हुए अब विद्यार्थी परिषद के साथ मजदूरों का काम भी उन्हें दे दिया। ठेंगड़ी जी संघ प्रचारक के बाद विद्यार्थी परिषद और मजदूर क्षेत्र में काम करने लगे। ठेंगड़ी जी की यह विशिष्टता थी कि वे किसी भी परिस्थिति, पक्ष, विचार के साथ काम करके राष्ट्र हित के मार्ग पर लाने में निपुण थे। मजदूर संगठनों की उलझनों, समस्याओं तथा समस्या से समाधान के मार्ग पर लाने में उन्होंने सारा दृश्य ही बदल दिया।

भारतीय मजदूर संघ का प्रथम अखिल भारतीय अधिवेशन

               12-13 अगस्त 1967 को दिल्ली में भारतीय मजदूर संघ का प्रथम अखिल भारतीय सम्मेलन हुआ।8 ठेंगड़ी जी ने संयोजक के नाते अपने प्रथम अखिल भारतीय सम्मेलन में संघ की नीतियों, विचारों एवं मूल सिद्धान्तों को प्रतिनिधियों के समक्ष रखा। स्थापना के 12 वर्ष बाद यह राष्ट्रीय स्तर का अधिवेशन था। सामान्यतः संगठनों में राष्ट्रीय समिति सर्वप्रथम बनती है। परन्तु यहां पर काम विपरीत दिशा से उपर उठा। राष्ट्रीय समिति बनाने से पूर्व जगह-जगह छोटी बड़ी स्थानीय यूनियनों का निर्माण किया गया। जब ये यूनियनें बढ़ने लगी तो उसके बाद प्रादेशिक इकाईयां भिन्न-भिन्न क्षेत्रों में काम करने वाली प्रदेश समितियों की घोषणा की गई। प्रदेश स्तर की इकाईयों के निर्माण के बाद ही राष्ट्रीय स्तर की समितियों की घोषणाएं की गई अर्थात् नीचे की ईकाई से उभरा हुआ कार्यकर्ता अपने समर्पण और विश्वसनीयता के आधार पर प्रदेश और राष्ट्रीय स्तर का कार्यकर्त्ता चुना गया।9 75 पूर्णकालिक कार्यकर्त्ताओं ने 500 यूनियनों को संलग्न कर एक बृहत् संगठन ‘‘भारतीय मजदूर संघ’’ खड़ा कर लिया। संघ का मुख्य पत्र ‘मजदूर वार्ता’10 के नाम से प्रकाशित होने लगा था जिसका प्रचार-प्रसार देश व्यापी मजदूर यूनियनों तथा लोगों के मध्य जानकारियां दे रहा था।

               भारत सरकार ने अपनी वार्षिक रिपोर्ट के आधार पर इस संघ को मान्यता प्रदान करने का निश्चय किया। रेलवे, चीनी, इंजीनियरिंग और टेक्सटाईल आदि क्षेत्रों के मजदूरों के राष्ट्रीय स्तर के चार अखिल भारतीय संघ घोषित किए गए। भारतीय मजदूर संघ ने श्रम कानून के अन्तर्गत आने वाले श्रमिकों को ही केवल श्रमिक नहीं माना बल्कि उससे बाहर परिश्रम के आधार पर जीविकोपार्जन करने वाले सभी को श्रमिक श्रेणी में रखा।

               इस राष्ट्रीय अधिवेशन तक पहुंचने तक 12 वर्ष की तपस्या के बड़े परिणाम दिखते हैं। चतुर्थ पंचवर्षीय योजना में सरकार के लिए राष्ट्रीय वेतन नीति, मूल्य नीति, राष्ट्रीय आय नीति तय करने का सुझाव एक गोलमेज सम्मेलन बुलाकर दिए जाने का प्रस्ताव रखा गया।11 ठेंगड़ी जी ने उस अवधारणा को ध्वस्त किया जिसे लोग श्रम को बाजार की वस्तु मान बैठे थे। जिसे न्यूनतम मूल्य पर खरीदा व बेचा जा सकता था और सतत् शोषण की प्रक्रिया के तहत अधिकतम उत्पादन और लाभ अर्जित करना उसका अभीष्ट हो चुका था।12 भारतीय मजदूर संघ ने रचनात्मक कार्य पर अपने को केन्द्रित किया। जो अपने राष्ट्रीय भाव को परिलक्षित करती है।

               भारतीय श्रम अन्वेषण केन्द्र मुम्बई तथा भारतीय चीनी उद्योग अन्वेषण केन्द्र लखनऊ की स्थापना अपने आप में एक रचनात्मक कार्य है। मुम्बई केन्द्र द्वारा वेतन तथा मूल्यों सम्बन्धी अन्वेषण सभी औद्योगिक श्रमिकों के लिए लाभप्रद सिद्ध हुआ। व्यापक स्तर पर अपना काम खड़ा करने के बाद ही राष्ट्रीय अधिवेशन किया गया।

               किसी भी संस्था व संगठन के समपर्ण की परीक्षा आपातकाल में ही निष्पक्षता से आंकी जा सकती है। चीन और पाकिस्तान के आक्रमण के समय भारतीय मजदूर संघ की पहल पर राष्ट्रीय मजदूर मोर्चा बनाने में पूरी शक्ति लगाई। यह भी नारा दिया गया कि प्रत्येक उद्योग में एक ही राष्ट्रवादी यूनियन रहे। श्रम दिवस भारतीय पद्धति से मनाने का श्रेय भी भारतीय मजदूर संघ को ही जाता है।13 भगवान विश्वकर्मा निर्माण कला के देवता है, उसमें भारतीय पद्धति चाहे वह गेरुआ ध्वज हो अथवा कालगणना के आधार पर अपना पञ्चांग निर्माण वह व्यवस्था भारतीय मजदूर संघ (भामस) की देन है। 

               ठेंगड़ी जी ने कहा है – ‘‘मानवता की मौलिक इकाई राष्ट्र है वर्ग नहीं।’’14 जहां अन्य मजदूर संगठन नारा देते कि ‘विश्व के मजदूर एक हो’ वहां भारतीय मजदूर संघ (भामस) ने नारा दिया ‘‘मजदूरो विश्व को संगठित करो।’’15 जब हम कहते हैं कि विश्व के मजदूरो एक हो तो यह वर्ग संघर्ष के लिए समाज को तैयार करते हैं। जब भामस यह कहता है कि मजदूरो दुनिया को संगठित करो तो वह मानवता व राष्ट्रों में सांमजस्य को बनाते हुए मानव व प्रकृति के सौहार्द का आदर्श स्थापित करने का आह्वान करता है। विदेशी अन्धानुकरण किसी भी क्षेत्र में घातक है। प्रत्येक समाज की अपनी विशिष्टताएं हैं। अतः भारतीय मजदूर संघ ने भारतीयता का आधार लिया।16

               इसी राष्ट्रीय अधिवेशन में जिसमें 2000 प्रतिनिधि उपस्थित थे, श्री दत्तोपन्त ठेंगड़ी भारतीय मजदूर संघ के महामन्त्री चुने गए। भारतीय मजदूर संघ सर्वस्पर्शी, संविधान के बदले परिवार भाव पर खड़ा होने वाला संगठन बन गया था। उन्होंने अपने इस प्रथम अधिवेशन में ‘‘भारतीय मजदूर संघ’ में तीन शब्दों के अन्दर निहित अर्थ और भाव को स्पष्ट किया। भारतीय शब्द इसके स्वरूप का ‘मजदूर’ इसके क्षेत्र का एवं ‘संघ’ इसके संवैधानिक संगठन का द्योतक है अर्थात् भारतीय मजदूर संघ नाम ही इसका परिचय है।17 

बिजिंग रेडियो द्वारा प्रसारित भाषण 28-04-1985

               चीन की ‘ऑल चाइना फेडरेशन ट्रेड यूनियन’ (ए.सी.एफ.टी.यू.) ने भारतीय मजदूर संघ के प्रतिनिधि को चीन आने का निमन्त्रण दिया था। उसमें ठेंगड़ी जी ने भारतीय मजदूर संघ का नेतृत्व किया। साम्यवादी विचारधारा का देश चीन भारतीय मजदूर संघ की कार्यपद्धति और प्रगति से प्रभावित था। भारत के सब मजदूर संगठनों को पीछे छोड़कर भारतीय मजदूर संघ सर्वपक्षों में आगे निकल गया था। चीन में ए.सी.एफ.टी.यू. के साथ आयोजित कार्यक्रमों के बाद विजिंग रेडियो (चीन) से ठेंगड़ी जी का भाषण प्रसारित किया गया। जिसमें उन्होंने भारत और चीन की विविध समानताओं भारतीय बौद्ध भिक्षुओं का चीन में करुणामय संदेश देने, चीन के विद्वानों का भारत में आकर अपनी ज्ञान पिपासा पूर्ण करने की चर्चा की।18 उन्होंने कहा, ‘‘आबादी व भौगोलिक रूप से बड़ा होना, इन सब में सर्वोपरि दुनिया की प्राचीनतम संस्कृतियों के दोनों देश बहुत कुछ करने में सक्षम हैं’’।

               आज भारत और चीन सीमा पर एक-दूसरे के सामने अस्त्र-शस्त्र लेकर खड़े हैं। ठेंगड़ी जी ने उस भाषण में भी भारत चीन सीमा विवाद को सम्मानपूर्वक ढंग से खत्म करने का आह्वान किया था।19 यह दोनों देशों की प्रगति में बाधा है। उन्होंने भारतीय मजदूर संघ तथा ए.सी.एफ.टी.यू. की विचार पद्धतियों में समानता लाने की बात भी की साथ ही बताया कि मार्क्स के विचार वर्तमान समस्याओं का समाधान देने में अक्षम है तथा वर्तमान आवश्यकताओं, परिस्थितियों तथा अनेक प्रकार की नई समस्याओं के परिणाम स्वरूप आपसी संघर्ष की अपेक्षा राष्ट्रीय पुनर्निर्माण को अधिक महत्त्व देने की आवश्यकता है।20

               उनका मानना था कि कृषि को, किसान को और ग्रामीण विकास को प्राथमिकता दी जाने की आवश्यकता है। आर्थिक समानता का गलत अर्थ प्रचारित कर लोगों में अधिक काम करने की प्रेरणा समाप्त करने वाला ‘महापात्र सिद्धान्त’ हानिकारक है। परिश्रमपूर्वक अधिक उत्पादन निकालने वाले किसानों को अधिक आर्थिक लाभ प्राप्त करने का अवसर मिलना चाहिए। इसके लिए मुक्त व्यापार की प्रशंसा की।

               ठेंगड़ी जी ने मजदूरों को सम्बोधित करते हुए कहा – ‘‘दूनिया के मजदूरो एक हो।’’ यह इसलिए नहीं कि मजदूर समाज का एक अलग वर्ग तैयार हो बल्कि मजदूरो द्वारा सम्पूर्ण मानवजाति का एकीकरण हो। भारतीय मजदूर संघ का नारा है – ‘‘मजदूरो ! दुनिया को एक करो।’’ चीन की तात्कालिक नीतियों पर भी उन्होंने प्रश्न खड़े किए थे। (क्रमशः)

संदर्भ :

  1. दत्तोपंत ठेंगड़ी, जीवन दर्शन, सुरुचि प्रकाशन, झण्डेवाला, नई दिल्ली, प्रथम संस्करण, जून-2015, खण्ड- 1, पृ. 97
  2. वही, पृ. 98
  3. वही, पृ. 99
  4. वही, पृ. 99
  5. वही, पृ. 95
  6. वही, पृ. 90
  7. वही, पृ. 91
  8. दत्तोपंत ठेंगड़ी, जीवन दर्शन, सुरुचि प्रकाशन, झण्डेवाला, नई दिल्ली, प्रथम संस्करण, जून-2015, खण्ड- 4, पृ. 14
  9. वही, पृ. 16
  10. वही, पृ. 17
  11. वही, पृ. 20
  12. दत्तोपंत ठेंगड़ी, जीवन दर्शन, सुरुचि प्रकाशन, झण्डेवाला, नई दिल्ली, प्रथम संस्करण, जून-2015, खण्ड- 6, पृ. 247
  13. वही, पृ. 21
  14. वही, पृ. 21
  15. वही, पृ. 222
  16. वही, पृ. 222
  17. वही, पृ. 25
  18. वही, पृ. 133
  19. वही, पृ. 133
  20. वही, पृ. 135

शोधार्थी, अम्बेडकर पीठ

हिमाचल प्रदेश केन्द्रीय विश्वविद्यालय

धर्मशाला, जिला कांगड़ा (हि.प्र.)