इतिहासकार : डॉ. ठाकुर प्रसाद वर्मा

डॉ. रवीन्द्र कुमार

(वर्ष 13, अंक 1-2) चैत्र-आषाढ़ मास कलियुगाब्द 5122 अप्रैल-जुलाई 2020

राष्ट्रवादी इतिहासकार डॉ. ठाकुर प्रसाद वर्मा का जीवन इतिहासकारों व समाजसेवियों के लिए प्रेरणा का स्रोत है। वे अखण्ड साधक थे। परिवार का संस्कारात्मक वातावरण और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में बाल्यावस्था से ही जुड़ जाने से उनमें राष्ट्रभाव के अंकुर प्रस्फुटित होने लगे थे। आगे चलकर इतिहास का विद्यार्थी होने के नाते वे और स्पष्ट होते गए कि साम्राज्यवादी शक्तियों ने भारतीय इतिहास को विकृत कर पेश किया है जिसका निराकरण किया जाना आवश्यक है। अतः उन्होंने भारत के वास्तविक इतिहास को सत्य साक्ष्यों के आधार पर विश्व के सम्मुख लाने का संकल्प किया।

               डॉ. ठाकुर प्रसाद वर्मा का जन्म विक्रमी संवत् 1987 (शक संवत् 1852) माघ शुक्ल पक्ष की द्वितीया तदानुसार, 20 जनवरी, 1931 मंगलवार को प्रातः 5.30 बजे गांव गोहनाताल तहसील बांसी वर्तमान सिद्धार्थ नगर में एक कायस्थ परिवार में हुआ था। इनके पिता जगन्नाथ लाल श्रीवास्तव आपराधिक व दीवानी मामलों के अधिवक्ता तथा न्यायाधिकारी (मुंसिफ) थे, जिन्हें लोग मुख्तार साहिब कहा करते थे। इनकी माता चम्पा देवी एक कुशल गृहणी थी। इनकी पत्नी  शिवकुमारी एक सरल एवं स्नेहमयी महिला थीं जिन्होंने लगभग तीन दशकों तक वाराणसी के नन्द लाल बजौरिया शिक्षा निकेतन में प्राचार्य के पद पर कार्य किया। वे सन् 2009 में स्वर्गवासी हुई।

डॉ. ठाकुर प्रसाद वर्मा एवं शिवकुमारी वर्मा के तीन पुत्रियां – गीता सिंह, उषा श्रीवास्तव एवं अनुपमा श्रीवास्तव तथा एक पुत्र सिद्धार्थ वर्मा है।

               ठाकुर प्रसाद वर्मा एक मेधावी छात्र थे। उनकी प्राथमिक शिक्षा सिसहनियां पाठशाला से शुरू हुई तथा नारकटहा स्थित रतनसेन उच्च विद्यालय से सन् 1949 में हाई स्कूल की शिक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की। उच्च शिक्षा के लिए उन्होंने सन्त एन्ड्रंयूज महाविद्यालय गोरखपुर में दाखिला लिया और 1954 में स्नातक की उपाधि ग्रहण की। बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय से ‘प्राचीन भारतीय इतिहास, संस्कृति एवं पुरातत्त्व’ विभाग से स्नातकोत्तर की उपाधि वर्ष 1956 में प्रथम श्रेणी में अर्जित कर तथा वह उसी वर्ष वह छत्तीसगढ़ महाविद्यालय, रायपुर में प्रवक्ता के पद पर नियुक्त हुए। सन् 1966 में शोध कार्य हेतु वह पुनः बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय वापिस चले आए। यहां प्रोफेसर अवध किशोरनारायण के निर्देशन में Palacography of post Asokan Brahmi script’ विषय पर सन् 1967 में पी.एच.डी. की उपाधि प्राप्त की तथा साथ ही वर्ष 1968 में डॉ. वर्मा ने इसी विश्वविद्यालय से मुद्रासंग्रहण विषय में डिप्लोमा भी किया और 1976 में ‘सिंहालीज’ विषय के अध्ययन पर प्रमाण पत्र प्राप्त किया। अतः वह इसी विश्वविद्यालय में सन् 1966 में प्रवक्ता के पद पर नियुक्त हुए जहां पर इन्होंने भारत के प्राचीन इतिहास पर शोधछात्रों का मार्गदर्शन किया। लम्बे समय तक कार्य करने के बाद सन् 1993 में काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से सेवानिवृत्त हुए।

               डॉ. ठाकुर प्रसाद वर्मा के साथ मेरा समीप्य उनकी कनिष्ठ पुत्री अनुपमा के साथ विवाहोपरान्त ही बना। डॉ. वर्मा अपनी अनुभूतियों एवं आदर्शों के प्रति सचेत रहा करते थे। पुरालेख, प्राच्य शिलालेख, कालगणना, पौराणिक भूगोल, मानवजाति उद्भव तथा भूगर्भीय अन्वेषण आदि विषयों पर उनकी जानकारी विलक्षण थी। वह अपने विषय पर ज्ञान को निरन्तर अद्यतन सूचनाओं पर परखते रहते थे तथा नवीन जानकारियों के आधार पर अपना विचार व चिन्तन गढ़ते रहते थे। बदलती परिस्थितियों एवं तकनीक में उम्रदराज होने के बावजूद भी उन्होंने कम्प्यूटर चलाना सीखा। वे हिन्दी व अंग्रेजी दोनों भाषाओं में अपने शोधपत्रों का टंकण स्वयं किया करते थे।

               डॉ. वर्मा का लेखन कौशल व सम्पादन कला असाधारण थी। वह शब्दों का चुनाव भाषा की स्पष्टता तथा शुद्धता के अनुरूप करते थे। उनके इस कौशल से अवगत होने का अवसर मुझे भारतीय इतिहास संकलन योजना की राष्ट्रीय संगोष्ठी, जो 1998 में मैसूर में हुई थी, की कार्यवाही ग्रन्थ प्रकाशन के अवसर पर हुआ जिसमें मैं सह-सम्पादक की भूमिका में था। यह Proceedings “Dating in Indian Archaeology, Problems and Perspective” के शीर्षक से प्रकाशित हुई थी।

               अखिल भारतीय इतिहास संकलन योजना की शोध पत्रिका ‘इतिहास दर्पण’ का सम्पादन उन्होंने लम्बे समय तक किया। वर्ष 2014 में उनके सम्मान में मैंने तथा उनके दो शिष्यों डॉ. बी.आर. मणी, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के पूर्व अतिरिक्त महानिदेशक एवं राष्ट्रीय संग्रहालय, नई दिल्ली के पूर्व महानिदेशक तथा प्रोफेसर अरविन्द कुमार सिंह, जो जीवाजी विश्वविद्यालय के प्राचीन भारतीय इतिहास संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग के विभागाध्यक्ष ने ‘‘प्राच्यबोध’’ नाम से एक अभिनन्दन ग्रन्थ जो बी.आर. पब्लिशिंग कॉरपोरेशन दिल्ली द्वारा दो भागों में प्रकाशित किया गया। जिसमें विद्वानों एवं शोधार्थियों के 53 शोध पत्रों का संग्रह हैं।

               ‘‘जम्बूद्वीप का इतिहास एवं सभ्यता’’, मनु कालीन पौराणिक इतिहास का पुनर्मूल्यांकन एवं एशिया तथा यूरोप की सभ्यताओं का उद्भव उनका नवीनतम कार्य था। इस शोध कार्य हेतु उन्हें भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद् द्वारा राष्ट्रीय छात्रवृत्ति मिली। परन्तु वर्तमान में व्याप्त वैश्विक महामारी कोविड-19 के कारण यह कार्य पूर्ण नहीं हो सका। वैसाख पूर्णिमा कलियुगाब्द 5122 तदनुसार 7 मई 2020 (गुरुवार) को वह परलोक सिधार गए।

               आशा है कि उनकी नवीनतम कृति ‘‘History and civilization of the Jambudveepa’’ मानव के विकास एवं भारतीय संस्कृति को समझने में विषय विशेषज्ञों तथा शोधकर्त्ताओं के लिए नया मार्ग प्रशस्त करेगी।

               उनके विशेष पुस्तकों तथा शोधपत्रों का संक्षिप्त विवरण नीचे सूचीबद्ध किया गया है :

  1. 1971, The Paleography of Brahmi Script in North India. (from c 236 B.C. to 200 A.D. ) Varanasi.
  2. 1971, प्राचीन भारतीय लिपिशास्त्र और अभिलेखिकी (प्रो. ए.के. नारायण के साथ)। सिद्धार्थ प्रकाशन, वाराणसी। 
  3. 1976, Development of Script in Ancient Kamrupa, Assam Sahitya Sabha, Jorhat.
  4. 1977, (with Lallanji Gopal), Studies in the History and Culture of Nepal, Bharati Prakashan, Varanasi.
  5. 1983, A Catalogue of the Greek and Indo – Greek Coins in the Department AIHC & Archaeology, BHU, Varanasi.
  6. 1983, A Catalogue of the Seals and Sealings in Govt. Museum Mathura , Government Museum, Mathura .
  7. 1990, पुराभिलेख चयनिका, सिद्धार्थ प्रकाशन, वाराणसी।
  8. 1992, अयोध्या एवं श्री राम जन्म भूमि ऐतिहासिक सिंहावलोकन, सिद्धार्थ प्रकाशन, वाराणसी।
  9. 1993, श्री राम और उनका युग (पुरातात्त्विक एवं ऐतिहासिक आकलन), भा.इ.सं.स., उ.प्र.
  10. 1993, The Science of Manvantaras (Seven Chapters of History of Earth). (Umakanta Keshar) Babasaheb Apte Smarak Samiti, Bangalore.
  11. 1994 (with A.K. Singh ), A Corpus of the Lichchhavi Inscriptions of Nepal, Ramananda Vidya Bhavan, New Delhi. 12.   
  12. 2001अयोध्या का इतिहास एवं पुरातत्त्व (डा. एस. पी. गुप्ता के साथ), डी. के. प्रिन्ट वर्ल्ड, नई दिल्ली।
  13. 2011 (with A K Singh) Inscriptions of the Gahadavalas and their Times ( In two volumes ), Aryan Books International New Delhi.
  14. ऋग्वेद के सात सूक्तों का वैज्ञानिक विवेचन (दिल्ली 2014)
  15. ईरान के सखामनीषिय नरेशों का इतिहास एवं महर्षि जरथुस्त्र, बी. आर. पब्लिशिंग कार्पोरेशन (दिल्ली 2014)
  16. दि इम्पीरियल मौखरीज (हिस्ट्री ऑफ इम्पीरियल मौखरीज ऑफ कन्नौज एण्ड हर्षवर्धन), (नोशन प्रेस चेन्नई 2018)

               इसके अतिरिक्त उनके द्वारा संपादित पुस्तकें व शोध पत्रिकाएं तथा 200 से अधिक राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय पत्रिकाओं में प्रकाशित लेख हैं, जिनका उल्लेख यहां संभव नहीं है।

उपकुलपति एवं विभागाध्यक्ष

दिल्ली इंस्टीच्यूट ऑफ हेरीटेड रिसर्च एवं मनैजमैन्ट

नई दिल्ली