पुस्तक समीक्षा

डॉ. भीम राव आंबेडकर : यात्रा के पद चिन्ह’

लकी शर्मा

(वर्ष 13, अंक 1-2) चैत्र-आषाढ़ मास कलियुगाब्द 5122 अप्रैल-जुलाई 2020

डॉ भीमराव जी आम्बेडकर जिन्हें संविधान निर्माता के रूप में लोकप्रियता प्राप्त है एक बहुत ही सुलझे हुए प्रखर प्रतिभा के स्वामी थे। उन्होंने समाज की समस्याओं का काफी विवेचनात्मक तथा तथ्यपरक अध्ययन किया। वह अपने काल में प्रबुद्ध चिन्तकों में अग्रणी थे तथा इन्हें विभिन्न अकादमिक ख्यातियां भी प्राप्त थी। डॉ. आम्बेडकर के द्वारा सुझाए गए समाधानों पर निरन्तर विचार-विमर्श होता रहा है तथा विभिन्न विद्वानों ने इस पर अपनी राय रखी। यह पुस्तक उसी शृंखला की एक अगली कड़ी है।

               डॉ. कुलदीप चन्द अग्निहोत्री हिन्दी भाषा के एक प्रकाण्ड विद्वान है जो इतिहास, राजनीति विज्ञान व अन्तर्राष्ट्रीय संबन्धों के विषय में अपने तार्किक व व्यवहारिक दृष्टिकोण के लिए लोकप्रिय हैं। ‘डॉ. भीम राव आंबेडकर : यात्रा के पद चिन्ह’ पुस्तक को 200 पृष्ठों की इस पुस्तक की विषयवस्तु को 8 अलग-अलग खण्डों में विभक्त किया गया है। जिसमें डॉ. आम्बेडकर के जीवन यात्रा के साथ-साथ छः अलग-अलग विषयों पर उनके विचारों की सरलिकृत व्याख्या की गई है। प्रायः ये ऐसे विषय हैं जिसका समकालीन सामाजिक व राजनीतिक परिवेश में अत्यधिक महत्त्व है। डॉ. आम्बेडकर के जीवन संघर्ष के साथ उनके योगदान व विभिन्न सामजिक विषयों को प्रथम अध्याय में अत्यधिक गंभीरता से लिखा गया है। ‘हिन्दू कोड बिल और आम्बेडकर का विधि मन्त्री’ विषय पर लेखक ने विवेचनात्मक अध्ययन का एक प्रतिमान स्थापित किया है।

               दूसरे अध्याय में ‘जाति व्यवस्था की जांच परख’ विषय पर लिखते समय उन्होंने डॉ. आम्बेडकर के निजी जीवन में जातीय कुरीतियों से उनके कुछ अनुभवों के भावनात्मक पक्ष से अपने को अलग नहीं रख पाते है। यह अध्याय कम से कम 12 अलग-अलग तत्त्वों के माध्यम से जो आम्बेडकर के सम्पूर्ण वाङ्मय में उद्धृत है से इस विषय का एक सुस्पष्ट वर्णन करता है।

               अगला अध्याय ऐसे विषय पर है जो पिछले दिनों दक्कन कॉलेज, पुणे द्वारा प्रकाशित लेख की वजह से फिर से गर्म बहस का हिस्सा बन गया था। यह अध्याय पाश्चात्य औपनिवेशिक विद्वानों द्वारा संपोषित आर्यों के आक्रमण सिद्धान्त का भारतीय साहित्यिक स्रोतों के आधार पर किया गया खण्डन है। इस अध्याय में दास-दस्यु के अर्थों की भी विवेचना की गई है। इस में वर्णित लगभग सभी विषय इतिहास के विद्यार्थियों के लिए लम्बे समय से शोध व परिचर्चा का विषय रहे हैं।

               चौथा अध्याय जो की सबसे विस्तृत है में लेखक ने एक ऐसे ज्वलन्त विषय को उठाया है जिससे अक्सर लेखक बचते ही नजर आते है। ‘भारत विभाजन और पाकिस्तान का प्रश्न’ अध्याय में लेखक ने आम्बेडकर के समीक्षात्मक अध्ययन के आधार पर इस विभाजन को एक मानव समुदाय के लिए एक भारी चूक बताई है। इसमें मुस्लिम मानसिकता का विश्लेषण, कांग्रेस द्वारा की गई तुष्टिकरण के उपक्रमों के साथ-साथ समाधान की उपलब्ध संभावनाओं पर जीवन्त व व्यवहारिक विचारों को प्रस्तुत किया है। आम्बेडकर के कथन ‘भारत का विभाजन भारत के हित में है’ का भी विस्तार में व्याख्या है।

               अध्याय पांच में लेखक ने डॉ. आम्बेडकर की दृष्टि में शिक्षा के महत्त्व और उसकी सर्वसुलभता में आने वाली कठिनाइयों तथा उसके निराकरण के लिए सुझाए गए विभिन्न माध्यमों व कार्ययोजनाओं का एक सुलझा हुआ चित्रण किया गया है।

               छठा अध्याय आम्बेडकर के ‘जम्मू-कश्मीर का प्रश्न’ में कश्मीर समस्या पर गंभीर अध्ययन व सुस्पष्ट विचारों का समकालिक परिस्थिती में एक समीक्षात्मक वर्णन है। इस अध्याय में जम्मू-कश्मीर इतिहास के कुछ ऐसे विषय वर्णित हैं जो पाठकों को इस विषय पर अपने पूर्व के अवधारणाओं पर पुनर्विचार करने पर विवश करेगी।

               सातवां अध्याय ‘बुद्ध की शरण में’ उन दार्शनिक विचारों व द्वन्दों में गोते लगाता रहता है जिसका अन्त आम्बेडकर के बुद्ध की शरण में जाने के मूल्यांकन से होता है। इस अध्याय में महापंडित राहुल सांकृत्यायन द्वारा आम्बेडकर के धर्मान्तरण की व्याख्या का सहारा लेकर लेखक ने आम्बेडकर के इस अन्तरण को वैश्विक दृष्टिकोण में देखने का प्रयास किया है।

               ग्रन्थ को लिखते समय लेखक ने डॉ. आम्बेडकर के द्वारा लिखित पुस्तकों को ही प्रमुख स्रोत बनाया है तथा एक नई दृष्टिकोण स्थापित करने का प्रयास किया गया है। जिसमें आम्बेडकर एक वर्ग विशेष के नेता न होकर पूरे राष्ट्र को नेतृत्व प्रदान करने की योग्यताओं का समिश्रण प्रतीत होते हैं। आम्बेडकर का हृदय उन सभी विषयों व समस्याओं से उद्वेलित होता है जो उस समय के समाज के लिए एक गंभीर समस्या थी तथा खूब सोच विचारकर उन्होंने अपने उपाय प्रस्तुत किए जो तार्किक व सुसंगत हैं। ग्रन्थ -सज्जा अधिक कुशल है। अध्यायों का विभाजन सुस्पष्ट है, पुस्तक का वजन इसकी पृष्ठों की संख्या के अनुपात में बहुत कम है। वस्तुतः यह पुस्तक अध्ययनशील शोधार्थियों हेतु बुद्धिमान शिक्षाविद् द्वारा एक विलक्षण प्रतिभा के धनी महामानव का सारगर्भित संकलन है।

“An insightful work done on the work of a genius

by an wise academician for the bookmen”

शोधार्थी

 शोध संस्थान नेरी,

हमीरपुर (हि.प्र.)